
कार्तिक मास माहात्म्य कथा: अध्याय 34 (Kartik Mas Mahatmya Katha: Adhyaya 34)
सूतजी ने ऋषियों से, कहा प्रसंग बखान । चौंतीसवें अध्याय पर, दया करो भगवान ॥ ऋषियों ने पूछा- हे सूतजी! पीपल के वृक्ष की शनिवार
सूतजी ने ऋषियों से, कहा प्रसंग बखान । चौंतीसवें अध्याय पर, दया करो भगवान ॥ ऋषियों ने पूछा- हे सूतजी! पीपल के वृक्ष की शनिवार
अनुपम कथा कार्तिक, होती है सम्पन्न । इसको पढ़ने से, श्रीहरि होते हैं प्रसन्न ॥ इतनी कथा सुनकर सभी ऋषि सूतजी से बोले- हे सूतजी!
सुना प्रश्न ऋषियों का, और बोले सूतजी ज्ञानी । पच्चीसवें अध्याय में सुनो, श्री हरि की वाणी ॥ (धर्मदत्त जी का कथन, चौबीसवीं कथा का
कान्यकुब्ज (कन्नौज) में एक ब्राम्हण रहता था। उसका नाम अजामिल था। यह अजामिल बड़ा शास्त्रज्ञ था। शील, सदाचार और सद्गुणों का तो यह खजाना ही
गज और असुर के संयोग से एक असुर जन्मा था, गजासुर। उसका मुख गज जैसा होने के कारण उसे गजासुर कहा जाने लगा। गजासुर शिवजी
महाभारत महाकाव्य, में एक प्रसंग के अनुसार नल और दमयन्ती की कथा महाराज युधिष्ठिर को सुनाई गई थी। युधिष्ठिर को जुए में अपना सब-कुछ गँवा
विवाह के कार्ड पे लडके के नाम के आगे-चिरंजीव तथा लडकी के नाम के आगे आयुष्मति क्यों लिखा जाता है? चिरंजीव: एक ब्राह्मण के कोई
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