
आशा दशमी पौराणिक व्रत कथा (Asha Dashami Pauranik Vrat Katha)
आशा दशमी की पौराणिक व्रत कथा, जो भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को सुनाई थी, इस कथा के अनुसार प्राचीन काल में निषध देश में एक
आशा दशमी की पौराणिक व्रत कथा, जो भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को सुनाई थी, इस कथा के अनुसार प्राचीन काल में निषध देश में एक
प्राचीन काल की बात है, एक गाँव में एक ब्राह्मण रहता था। वह ब्राह्मण नियमानुसार भगवान विष्णु का पूजन प्रतिदिन करता था। उसकी भक्ति से
पापांकुशा एकादशी का महत्त्व: अर्जुन कहने लगे कि हे जगदीश्वर! मैंने आश्विन कृष्ण एकादशी अर्थात इंदिरा एकादशी का सविस्तार वर्णन सुना। अब आप कृपा करके
लिखने लगा हूँ श्रीहरि के, चरणों में शीश नवाय । कार्तिक माहात्म का बने, यह इक्कीसवाँ अध्याय ॥ अब ब्रह्मा आदि देवता नतमस्तक होकर भगवान
माँ शारदा की प्रेरणा, स्वयं सहाय । कार्तिक माहात्म का लिखूं, यह बीसवाँ अध्याय ॥ अब राजा पृथु ने पूछा – हे देवर्षि नारद! इसके
कार्तिक मास माहात्म्य का, यह इकत्तीसवाँ अध्याय । बतलाया भगवान ने, प्रभु स्मरण का सरल उपाय ॥ भगवान श्रीकृष्ण ने कहा- पूर्वकाल में अवन्तिपुरी (उज्जैन)में
मुझे सहारा है तेरा, सब जग के पालनहार । कार्तिक मास के माहात्म्य का बत्तीसवाँ विस्तार ॥ भगवान श्रीकृष्ण ने आगे कहा- हे प्रिये! यमराज
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