
पुरुषोत्तम मास माहात्म्य कथा: अध्याय 1 (Purushottam Mas Mahatmya Katha: Adhyaya 1)
कल्पवृक्ष के समान भक्तजनों के मनोरथ को पूर्ण करने वाले वृन्दावन की शोभा के अधिपति अलौकिक कार्यों द्वारा समस्त लोक को चकित करने वाले वृन्दावनबिहारी
कल्पवृक्ष के समान भक्तजनों के मनोरथ को पूर्ण करने वाले वृन्दावन की शोभा के अधिपति अलौकिक कार्यों द्वारा समस्त लोक को चकित करने वाले वृन्दावनबिहारी
सूतजी बोले, ‘राजा परीक्षित् के पूछने पर भगवान् शुक द्वारा कथित परम पुण्यप्रद श्रीमद्भागवत शुकदेवजी के प्रसाद से सुनकर और अनन्तर राजा का मोक्ष भी
श्रीनारायण बोले, ‘हे नारद! भगवान् पुरुषोत्तम के आगे जो शुभ वचन अधिमास ने कहे वह लोगों के कल्याण की इच्छा से हम कहते हैं, सुनो।
श्रीनारायण बोले, ‘चित्रगुप्त धर्मराज के वचन को सुनकर अपने योद्धाओं से बोले, ‘यह कदर्य प्रथम बहुत समय तक अत्यन्त लोभ से ग्रस्त हुआ, बाद चोरी
पुण्यशील-सुशील बोले, ‘हे विभो! गोलोक को चलो, यहाँ देरी क्यों करते हो? तुमको पुरुषोत्तम भगवान् का सामीप्य मिला है। कदर्य बोला, ‘मेरे बहुत कर्म अनेक
नारदजी बोले, ‘हे तपोनिधे! तुमने पहले पतिव्रता स्त्री की प्रशंसा की है अब आप उनके सब लक्षणों को मुझसे कहिये। सूतजी बोले, ‘हे पृथिवी के
दृढ़धन्वा राजा बोला, ‘हे मुनियों में श्रेष्ठ! हे दीनों पर दया करने वाले! श्रीपुरुषोत्तम मास में दीप-दान का फल क्या है? सो कृपा करके मुझसे
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