
पुरुषोत्तम मास माहात्म्य कथा: अध्याय 24 (Purushottam Mas Mahatmya Katha: Adhyaya 24)
मणिग्रीव बोला, ‘हे द्विज! विद्वानों से पूर्ण और सुन्दर चमत्कारपुर में धर्मपत्नी के साथ में रहता था। धनाढय, पवित्र आचरण वाला, परोपकार में तत्पर मुझको
मणिग्रीव बोला, ‘हे द्विज! विद्वानों से पूर्ण और सुन्दर चमत्कारपुर में धर्मपत्नी के साथ में रहता था। धनाढय, पवित्र आचरण वाला, परोपकार में तत्पर मुझको
दृढ़धन्वा बोला, ‘हे ब्रह्मन्! हे मुने! अब आप पुरुषोत्तम मास के व्रत करने वाले मनुष्यों के लिए कृपाकर उद्यापन विधि को अच्छी तरह से कहिए।
अब उद्यापन के पीछे व्रत के नियम का त्याग कहते हैं। बाल्मीकि मुनि बोले, ‘सम्पूर्ण पापों के नाश के लिये गरुडध्वज भगवान् की प्रसन्नता के
श्रीनारायण बोले, ‘इस प्रकार कह कर मौन हुए मुनिश्वर बाल्मीकि मुनि को सपत्नीक राजा दृढ़धन्वा ने नमस्कार किया, और प्रसन्नता के साथ भक्तिपूर्वक पूजन किया।
श्रीनारायण बोले, ‘चित्रगुप्त धर्मराज के वचन को सुनकर अपने योद्धाओं से बोले, ‘यह कदर्य प्रथम बहुत समय तक अत्यन्त लोभ से ग्रस्त हुआ, बाद चोरी
पुण्यशील-सुशील बोले, ‘हे विभो! गोलोक को चलो, यहाँ देरी क्यों करते हो? तुमको पुरुषोत्तम भगवान् का सामीप्य मिला है। कदर्य बोला, ‘मेरे बहुत कर्म अनेक
नारदजी बोले, ‘हे तपोनिधे! तुमने पहले पतिव्रता स्त्री की प्रशंसा की है अब आप उनके सब लक्षणों को मुझसे कहिये। सूतजी बोले, ‘हे पृथिवी के
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