
पुरुषोत्तम मास माहात्म्य कथा: अध्याय 18 (Purushottam Mas Mahatmya Katha: Adhyaya 18)
नारद जी बोले, ‘हे तपोनिधे! उसके बाद साक्षात् भगवान् बाल्मीकि मुनि ने राजा दृढ़धन्वा को क्या कहा सो आप कहिये। श्रीनारायण बोले, ‘वह राजर्षि दृढ़धन्वा
नारद जी बोले, ‘हे तपोनिधे! उसके बाद साक्षात् भगवान् बाल्मीकि मुनि ने राजा दृढ़धन्वा को क्या कहा सो आप कहिये। श्रीनारायण बोले, ‘वह राजर्षि दृढ़धन्वा
पद्मिनी एकादशी का महत्त्व: धर्मराज युधिष्ठिर कहने लगे कि, हे जनार्दन! आपने सभी एकादशियों का विस्तारपूर्वक वर्णन कर मुझे सुनाया, अतः अब आप कृपा करके
श्रीसूत जी बोले, ‘हे तपस्वियो! इस प्रकार कहते हुए श्रीनारायण को मुनिश्रेष्ठ नारद मुनि ने मधुर वचनों से प्रसन्न करके कहा। हे ब्रह्मन्!तपोनिधि सुदेव ब्राह्मण
सूतजी बोले, ‘हे विप्रो! नारायण के मुख से राजा दृढ़धन्वा के पूर्वजन्म का वृत्तान्त श्रवणकर अत्यन्त तृप्ति न होने के कारण नारद मुनि ने श्रीनारायण
बाल्मीकि मुनि बोले, ‘इसके बाद फिर प्रतिभा की अनलोत्तारण क्रिया करके प्राणप्रतिष्ठा करे। अन्यथा यदि प्राणप्रतिष्ठा नहीं करता है तो वह प्रतिमा धातु ही कही
दृढ़धन्वा राजा बोला, ‘हे तपोधन! पुरुषोत्तम मास के व्रतों के लिए विस्तार पूर्वक नियमों को कहिये। भोजन क्या करना चाहिये? और क्या नहीं करना चाहिये?
परमा एकादशी का महत्त्व: अर्जुन ने कहा, हे कमलनयन! आपने शुक्ल पक्ष की एकादशी का विस्तारपूर्वक वर्णन कर मुझे सुनाया, अतः अब आप कृपा करके
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