श्री गुरु जम्भेश्वर भगवान गोचारन लीला भाग 3

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 श्री गुरु जम्भेश्वर भगवान गोचारन लीला भाग 3

श्री गुरु जम्भेश्वर भगवान गोचारन लीला भाग 3
श्री गुरु जम्भेश्वर भगवान गोचारन लीला भाग 3

अब तो ग्रामीणजनों एवं माता पिता प्रियजनों को प्रसन्न करने के लिए नित्यप्रति गऊएँ चराते हैं। पूर्व अवतार श्रीकृष्ण के समय में भी तो गोचारण ही किया था। उसी परम्परा को आगे बढ़ाया है। भारतवासियों के लिए प्रेरणा के स्त्रोत बने हैं। वन में सभी निर्भय थे, किसी प्रकार का वन्य जीवों का उपद्रव नहीं था।पशुधन दिन दुगूना रात चौगुना वृद्धि को प्राप्त हो रहा था।

 हे वील्हा !एक दिन ग्वाल बालों के साथ सम्भराथल वन में गऊएँ आदि पशुधन चरा रहे थे सभी ग्वाल बाल उस समय सम्भराथल सर्वोच्च शिखर पर एकत्रित हुए और कहने लगे- हम सभी मिल कर लुकमान का खेल खेलते हैं। एक गोपाल आँख बंद करके बैठेगा, दूसरे सभी छुपेगे। यदि वह खोजने वाला जो आँख बैद करके बैठा था, वह अन्यों को जो छुपे हुए हैं, उनको खोज लेगा तो वह जीत जायेगा। जिसको खोज लिया, पकड़ लिया वही फिर अन्यों को खोजेगा। इसी प्रकार से यह खेल चलता जायेगा।

 सर्वप्रथम सभी बालक जाम्भोजी के पास आये और कहने लगे-आप भी आज हमारे साथ खेल खेलने के लिए सम्मिलित हो जाईये। यह बाल्यावस्था तो खेल खेलने के लिए ही तो मिली है। यदि आप स्वयं विष्णु अवतार हैं तो भी सभी अवतारों ने अपने-अपने तरीके से खेल खेले ही हैं।

सभी बालकों ने कहा- आज तो हम आपके साथ ही खेलेंगे, क्योंकि अब हम हमारी गायें आदि पशुधन तो आपकी कृपा से निश्चित हैं। आपने स्वयं ही चराने की जिम्मेवारी ले ली है। आज तो बारी भी आपकी है। जब से आप हमारे संरक्षक हुए हैं तब से ही हम खेल ही खेलते हैं। अन्य तो हमारा कुछ कार्य नहीं है किन्तु आज तो आप ही हमारे साथ खेले तो हमें आनन्द मिलेगा।

 जम्भेश्वर जी ने कहा- आप मुझे किस प्रकार का खेल खिलाओगे वैसे तो सम्पूर्ण सृष्टि ही मेरा खेल है। इसे हम तो सत्य स्वीकार नहीं करते, मात्र ईश्वर की क्रीड़ा के रूप में ही मानते हैं। यदि आज कुछ विशेष खेल खेलना है तो आप मुझे आदेश दें कि मुझे क्या करना होगा।

 बालक कहने लगे कि आज हम आप मिलकर हमारा लोकप्रसिद्ध खेल लुकमीचण ही खेलेंगे। इससे हम आपको सर्वप्रथम आँखे बंद करके बिठायेंगे, हम सभी अदृश्य स्थानों में जाकर छुपेंगे। जब हम | आपको आवाज लगायेंगे तभी आप आकर हमें ढूंढ लेना। हमने सुना है कि आप अन्तर्यामी है किन्तु अन्तर की तो बात ही क्या? आप हमें बाहर भी नहीं ढूंढ़ सकते। हम लोग छुपने में बड़े ही कुशल हैं, उतने आप ढूंढने में नहीं है।

 जाम्भोजी ने कहा- ऐसा ही होगा।जो आप लोगों की इच्छा है वहीं मैं आज करूंगा। आप लोग छुपने के लिए जाइये! मैं यहाँ आँखे बन्द किये बैठा हूँ, मैं आप लोगों को छुपते हुए नहीं देखूंगा, फिर भी ध्यान रखना, में ढूंढ़ ही लूंगा। तुम्हें मालूम होना चाहिये कि मैं आप लोगों को खोजने के लिए ही आया हूँ? तुम लाग इस देश में आकर छुप गये हो। मुझे तो पता था कि प्रहलाद भक्त के बिछड़े हुए जीव किस देश में धुप हुए हैं। इस समय तो तुम खेल कर रहे हो किन्तु मैं तुम्हें वास्तविकता की बात बतला रहा हूँ।

 जाम्भोजी ने अपने दोनों हाथ आँखों पर रखकर आँखे बन्द कर ली। वृति अन्तर हो गयी, बाहा संसार निवृत्त हो गये, बालक जहाँ भी छुपने के लिए जाते, वहीं पर जाम्भोजी आँखे बन्द किये हुए बैठे दिखाई दीया । अनेक पेड़, फोग, कंकोड़ा, कुमठा आदि वृक्षों के पीछे छुपने की जगह ढूंढ़ने लगे। जहाँ कहीं भी जाते,वहीं पर ही आँख बंद किए हुए बैठे दिखाई दिए।

भगवान तो कण-कण में व्यापक है, उनकी विद्यमानता कभी अभाव को प्राप्त नहीं होती। बालकों को बतलाया कि आप लोग ईश्वर को किसी एक शरीरधारी या मन्दिर में ही न देखो, जहाँ पर भी देखो बही पर उपस्थित है। आप छुपकर कोई पापकर्म करने की कोशिश मत करना, तुम छुप ही नहीं सकते वह तो तुम्हारी आत्म रूप से तुम्हारे भीतर ही विराजमान है। तुम कैसे किससे छुप सकते हो। परेशान होकर सभी बालक एकत्रित हो गये, और आपस में कहने लगे-

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यह जाम्भोजी तो नट खेलता है। हम लोग जहाँ पर भी लुकने जाते हैं वहीं पर जाकर पहले ही बैठ जाता है। अब हम लोग इनके साथ नहीं खेलेंगे, यह भी कोई खेल हुआ कि हमारे छुपने के स्थानों पर हमसे पहले ही जाकर आँखे बन्द किये हुए बैठा है। चलो इनके पास ही चलते हैं। उनसे यह रूंगट खेल

खेलने की बात कहते हैं। हमारी बात अवश्य ही स्वीकार करेगा, ऐसा कहते हुए सभी बालक जाम्बोजी के पास पहुंचे और कहने लगे- हैं जम्भेश्वर!

 आप हम से रूंगट न खेलें, यदि आपको खेलना ही हो तो अबकी बार आप छुप जाओ, हम सभी मिलकर आपको अभी तुरंत ही ढूंढ़ लेते हैं। तभी आपकी रूंगट का पता चलेगा हम लोग यहाँ के चप्पे चप्पे से परिचित हैं, कहीं भी आपको छोड़ेंगे नहीं।

 जाम्भोजी बोले- तब तो ऐसा ही हो? मैं छुप जाता हूँ आप लोग सभी मिलकर या एक अलग अलग रहकर के मुझे ढूंढ़ लेना अब नियमानुसार पहले अपनी अपनी आँखे बन्द करो? सभी अपनी अपनी आँखे बन्द करके बैठ गये। उसी समय जाम्भोजी वहीं पर छुप गये। किसी ने कहीं आते जाते नहीं देखा, बालकों ने आँखे खोलकर सम्पूर्ण जंगल ढूंढ लिया किन्तु कहीं पर भी नहीं मिले। साँझ का समय हो गया बालक अपनी अपनी गायों को लेकर वापिस पींपासर चले आये, किन्तु जाम्भोजी का कहीं कुछ पता नहीं चला।

ग्वाल बालों ने लोहटजी को जाकर समाचार सुनाया- हे राजन्! आज हम सभी ग्वाल बाल आपके लाला के साथ मिलकर के अंधलघोटा खेल खेल रहे थे पहले तो हमने उनसे आँखे बन्द करके बैठने को कहा किन्तु हम तो जहाँ पर ही जाते, वहीं पर ही आपका हमारा मित्र जाम्भोजी बैठे हुए दिखाई देते थे।

जब हमने कहा कि तुम छुपो, हम सभी मिल करके खोजेंगे, तब तो वह तो ऐसा छुप गया कि कहीं उसका पता नहीं चला। न जाने कहाँ गया, इस धरती पर तो कहीं दिखाई नहीं दिया। हम तो सम्भराथल जंगल से सदा ही परिचित हैं। ऐसी कोई जगह नहीं है जिसे हम नहीं जानते हो, जहाँ पर हमने ढूंढा नहीं हो। आप तो ग्रामपति ठाकुर हो हमने आपका बच्चा खो दिया है, आप हमें क्षमा करें।

 लोहटजी ने कहा- हे बालकों! आप लोग निर्दोष हो, मैं अपने बेटे से अच्छी तरह से परिचित हूँ, उसका कुछ भी नहीं बिगड़ेगा किन्तु मैं पिता हूँ, यह मेरा ओरस है। बिना खोजे मुझे शांति कैसे होगी? अब तो आप लोग अपने अपने घर जाओ प्रात:काल मैं और अन्य ग्रामवासी तुम्हारे साथ ही चलेंगे, जहाँ पर भी छुपा था वह जगह हमें बताना। हम लोग खोजने की कोशिश करेंगे।

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दूसरे दिन प्रात:काल ग्वाल बालों को करके ढूंढ़ने के लिए वन में चले। बालकों ने वह जगह बतलाई जहाँ से अन्तिम दर्शन हुए थे। उसके बाद कहीं दिखाई नहीं दिये थे। पैरों के निशान देखे किन्तु कहीं पर भी खोज नहीं मिला, शाम को हार कर के वापिस घर लौट आये।

गाँव के लोग लोहट-हाँसा को धैर्य बंधाते। अलख की गति लखी नहीं जाती। पूर्व चरित्रों का स्मरण करते हुए उनकी अलौकिकता से अभिभूत हो जाते, पुत्र के वापिस आने की आशा जग जाती। मोहवश हो जाने पर नित्यप्रति सम्भराथल की तरफ निहारते कि अभी आया। इस प्रकार एक महीना व्यतीत हो गया लेकिन हाँसा का दुलारा लौटकर नहीं आया।

 एक दिन ग्वाल बाल अपने पशुधन को लेकर प्रातःकाल ही घर से निकल पड़े। नित्यप्रति की भांति सम्भराथल की ओर से प्रस्थान किया। ग्वालों ने देखा कि जाम्भो सम्भराथल पर बैठे ध्यान लगा रहे हैं। दौड़कर पास में गये। खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा। प्रेम से गले से गला, हाथ से हाथ, पैर से पैर मिलाकर शरीर से शरीर स्पर्श करके मिले। प्रेमाश्रु बहने लगा।

ग्वाल बाल कहने लगे- हे भाई! तुम्हारे कहने से तो हम लुके थे और हमारे कहने से तुम ऐसे लुक गये कि एक माह तक तुम्हारा कहीं पता ही नहीं चला। क्या कहीं ऐसा भी छुपा जाता है ? एक माह तक लगातार ? हम लोग एवं तुम्हारे माता पिता, तुम्हारे बिना कितने उदास थे किस प्रकार से तुम्हारे बिना ये दिन दुःख से काटे हैं। हमारी कोई भूल हो गयी हो तो हमें क्षमा कर देना। ऐसा खेल फिर कभी मत खेलना जिससे हम अपने प्राण प्यारे को ही खो बैठें।

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उनमें से एक बालक भागता हुआ पीपांसर आया और सर्वप्रथम लोहट हाँसा से बधाई माँगी। आपका बेटा आज वापिस सम्भराथल पर विराजमान है। लोहट हांसा ने कहा- हे बालक! यह शुभ समाचार, सुनी सुनाई बात कहता है या आँखो से देखी हुई।

बालक बोला- मैं अभी अभी अपनी इन्हीं आँखो से देखकर दौड़ता हुआ, एक ही श्वास से पींपासर आया हूँ। लोहटजी ने उस बालक को बहुत-बहुत बधाईयाँ दी। एक बछड़े वाली दुधारू गाय प्रदान की। लोहट हांसा एवं सगे सम्बन्धी दौड़कर गाँव से बाहर निकले। पहले मिलने की लालसा लिए हुए बड़े बूढ़ों से आगे तो बच्चे भाग रहे हैं। लोहट हांसा तो बहुत ही पीछे रह गये हैं। अब क्या किया जाय बुढ़ापा आ गया है भागा जाता नहीं। यदि इस समय पंख आ जाये तो उड़कर पहले पंहुचा जा सकता है।

 लोगों ने देखा कि जाम्भोजी ग्वाल बालों से घिरे हुए सम्भराधल पर बैठे हुए हैं। माता हांसा पिता लोहटजी ने देखा, लोचन सफल किये। सुखी खेती वर्षा से पुनः हरी भरी हो जाती है। गर्मी के पश्चात वर्षा की बौछारें भली लगती है। ठण्डक में ठिठुरते हुए आग की तपन सुहावनी लगती है।

वियोगजन्य दुख के पश्चात संयोग सुख अति आनन्ददायी होता हैं माता हांसा ने अपने लाडले को छाती से चिपकाया, अश्रुधारा बह चली। आँसुओं के जल से अपने प्यारे पुत्र को स्नान करवाया। खुशी में नाचते-गाते ढ़ोल बजाते हुए वापिस पीपासर नगरी में प्रवेश करवाया। पींपासर में खुशियां मनायी गयी, रंग गुलाल छिड़के लोहटजी ने खुशी में विशेष पूजा-पाठ का आयोजन किया अपने परिजनों को मिष्ठान्न भोजन करवाया। दूसरा जन्म हुआ हो ऐसा ही लोहट घर उत्सव होने लगा।सुहागिने गीत गाने लगी। गायक वादक कलाकार

अपने अपने राग रागनियों से पीपासर नगरी को गुंजायमान कर दिया। आज पींपासर नगरी इन्द्रपुरी से भी बढ़कर राग रंग महोत्सव में डूबी हुई थी।

 गाँव के लोग चर्चा करने लगे कि देखो भाई! यह लोहटजी का गुंगा एक महीने तक कहाँ गया था? न जाने यह कहाँ तो बैठा, कहाँ सोया, कहाँ रहा, कुछ पता नहीं है। लेकिन लोहट एवं अपना सभी का सौभाग्य है कि वापिस आ गया कहीं ढूंढ़ने से नहीं मिला किन्तु अपने आप आ गया। ऐसा क्यों किया? 

इसकी तो गती ही निराली है,भगवान की बात भगवान ही जाने हैं,हम तो अल्पज्ञ है कहा उस सर्वज्ञ की गती को जान सकते हैं।

श्री गुरु जम्भेश्वर भगवान गौ चारण लीला भाग 4

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Sandeep Bishnoi

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