आशा दशमी पौराणिक व्रत कथा (Asha Dashami Pauranik Vrat Katha)

आशा दशमी की पौराणिक व्रत कथा, जो भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को सुनाई थी, इस कथा के अनुसार प्राचीन काल में निषध देश में एक राजा राज्य करते थे, जिनका नाम नल था। उनके भाई पुष्कर ने युद्ध में जब उन्हें पराजित कर दिया, तब नल अपनी भार्या दमयंती के साथ राज्य से बाहर चले गए। वे प्रतिदिन एक वन से दूसरे वन में भ्रमण करते रहते थे तथा केवल जल ग्रहण करके अपना जीवन-निर्वाह करते थे और जनशून्य भयंकर वनों में घूमते रहते थे।

एक बार राजा ने वन में स्वर्ण-सी कांति वाले कुछ पक्षियों को देखा। उन्हें पकड़ने की इच्छा से राजा ने उनके ऊपर वस्त्र फैलाया, परंतु वे सभी वस्त्र को लेकर आकाश में उड़ गए। इससे राजा बड़े दु:खी हो गए। वे दमयंती को गहरी निद्रा में देखकर उसे उसी स्थिति में छोड़कर वहाँ से चले गए।

जब दमयंती निद्रा से जागी, तो उसने देखा कि राजा नल वहाँ नहीं हैं। राजा को वहाँ न पाकर वह उस घोर वन में हाहाकार करते हुए रोने लगी। महान दु:ख और शोक से संतप्त होकर वह नल के दर्शन की इच्छा से इधर-उधर भटकने लगी। इसी प्रकार कई दिन बीत गए और भटकते हुए वह चेदी देश में पहुँची। दमयंती वहाँ उन्मत्त-सी रहने लगी। वहाँ के छोटे-छोटे शिशु उसे इस अवस्था में देख कौतुकवश घेरे रहते थे।

एक बार कई लोगों में घिरी हुई दमयंती को चेदी देश की राजमाता ने देखा। उस समय दमयंती चन्द्रमा की रेखा के समान भूमि पर पड़ी हुई थी। उसका मुखमंडल प्रकाशित था। राजमाता ने उसे अपने भवन में बुलाया और पूछा: तुम कौन हो?

इस पर दमयंती ने लज्जित होते हुए कहा: मैं विवाहित स्त्री हूँ। मैं न किसी के चरण धोती हूँ और न किसी का उच्छिष्ट भोजन करती हूँ। यहाँ रहते हुए कोई मुझे प्राप्त करेगा तो वह आपके द्वारा दंडनीय होगा। देवी, इसी प्रतिज्ञा के साथ मैं यहाँ रह सकती हूँ ।

राजमाता ने कहा: ठीक है, ऐसा ही होगा।

तब दमयंती ने वहाँ रहना स्वीकार किया। इसी प्रकार कुछ समय व्यतीत हुआ। फिर एक ब्राह्मण दमयंती को उसके माता-पिता के घर ले आया किंतु माता-पिता तथा भाइयों का स्नेह पाने पर भी पति के बिना वह बहुत दुःखी रहती थी।

गौरी नंदन तेरा वंदन, करता है संसार: भजन (Gauri Nandan Tera Vandan Karta Hai Sansar)

उठ जाग मुसाफिर भोर भई - भजन (Bhajan: Uth Jag Musafir Bhor Bhai)

सर्व भयानक रोग नाशक मंत्र (Sarv Bhayanak Rog Nashak Mantra)

एक बार दमयंती ने एक श्रेष्ठ ब्राह्मण को बुलाकर उनसे पूछा: हे ब्राह्मण देवता ! आप कोई ऐसा दान एवं व्रत बताएं जिससे मेरे पति मुझे प्राप्त हो जाएं।

इस पर उस ब्राह्मण ने कहा: तुम मनोवांछित सिद्धि प्रदान करने वाले आशा दशमी व्रत को करो, तुम्हारे सारे दु:ख दूर होंगे तथा तुम्हें अपना खोया पति वापस मिल जाएगा।

तब दमयंती ने आशा दशमी व्रत का अनुष्ठान किया और इस व्रत के प्रभाव से दमयंती ने अपने पति को पुन: प्राप्त किया और हँसी-खुशी से अपना जीवन व्यतीत किया और मोक्ष धाम को प्राप्त हुई।

Picture of Sandeep Bishnoi

Sandeep Bishnoi

Leave a Comment