भूतों की गति करना(भटकी हुई आत्माओं को जाम्भोजी ने मोक्ष की प्राप्ति दिलाई)
समराथल पर विराजमान श्रीदेवी के पास आये हुए मेरठ के राजा आशकरण एवं खेतसी ब्राह्मण हवाला ने अमावस्या कथा का विवरण पूछा था। श्रीदेवी ने व्रत कथा महात्मय एवं शब्द सुनाया था।
पुनः आशकरण ने पूछा- हे देव! आप जीवित व्यक्तियों की गति तो अपने नियम पालन से कर सकते हो किन्तु जो व्यक्ति मृत्यु को प्राप्त हो गया है और उसकी गति नहीं हुई अर्थात् जन्म के प्राप्त नहीं हुआ है वह अशरीरी जीव जो वायु के रूप में भटका है उसकी दशा अत्यंत दयनीय है, आप उस जीव पर भी दया करके उसकी गति कर सकते हैं क्या?
श्री देवजी ने कहा- हे आसकरण ! यह बात तुमने ठीक समय पर पूछी है। तुम कुछ समय तक यहाँ ठहरो। मैं प्रत्यक्ष रूप से तुम्हें बतलाउंगा। अभी कुछ समय के पश्चात ही तुम्हारे सामने गंगापार से विश्नोईयों की जमात आयेगी। उस जमात में कुलचंद एवं उनके दोनों बेटे धनो बिछू भी आ रहे हैं तथा अन्य सुरगण, भंवरो उनके दामाद चेलोजी आदि इष्टमित्रों सहित आ रहे हैं।
ये लोग परमभक्त हैं, प्रायः हर छठे महीने सम्भराथल पर आते रहते हैं। इधर फाल्गुन महीने तथा उधर आश्विन के महीने में इनका जमात सहित आगमन होता रहता है किन्तु अब की बार कुछ घबराये हुए आ रहे हैं।
इतनी वार्ता श्रीदेवजी कह ही रहे थे कि एक आदमी ने आकर समाचार सुनाया कि गंगापार के विश्नोईयों की जमात तो पंहुच चुकी है। जाम्बेश्वरजी के पास विश्नोईयों की जमात सहर्ष पंहुची, दण्डवत प्रणाम किया।
हे दूल्हा! उन लोगों ने अपनी बहुमूल्य भेंट श्री चरणों में समर्पित की, श्रीदेवजी ने उन्हें आशीर्वचन कहे। कुशल समाचार पूछा- कुलचंद जी ने कहा- हे देव! आपकी अपार कृपा से सभी कुशल मंगल है। जिसके सिर पर आपका हस्तकमल रखा हो तो उनकी कुशलता तो सदैव ही रहेगी। अनकों बार हम आपकी शरण में आये हैं, कभी हमें कष्ट नही हुआ।
आपकी अपार कृपा से ही तो मुझे चार संतानों की प्राप्ति हुई थी। शांति मेरी बड़ी बेटी जिसका विवाह मैंने आपकी आज्ञा है। मेरे दो बेटे से चेलोजी से कर दिया। चेलोजी सज्जन प्रकृति के हमारे दामाद है। मेरी बेटी प्रसन्न धनो और बीछ भी आपकी कृपा से सुपात्र है ये भी मेरे साथ में हैं। मेरी छोटी बेटी इमरती का विवाह अपके दर्शन करके वापिस जाकर कर दूंगा।
आपकी कृपा से वह भी सम्पन्न हो जायेगा हम लोग आपको निमंत्रण देने आये हैं। कृपा करके मेरी छोटी बेटी के विवाह में आप अवश्य ही पधारो। इस प्रकार से कुलचन्दजी कुशल समाचारों से अवगत करवा रहे थे कि धनो बीछू भी देवजी के दरबार में आ गये।
जाम्भोजी ने पूछा- क्या बात है आप लोग पीछे से क्यों आये? क्या कार्य हेतु रूक गये थे? धनो बीछू कहने लगे- हे देव! क्या बतलावें, आपकी कृपा से ही हम लोग पंहुच गये हैं। अन्यथा तो न जाने हमारे साथ क्या घटना घटित हो जाती है। हम लोग अपने साधन द्वारा सकुशल कुचौर गांव तक तो पंहुच चुके था वहां हमें जंगल में ही रात्रि हो गयी थी।
एकाएक सैंकड़ों भूत-प्रेतों ने हमें घेर लिया, आगे बढ़ने ही नहीं दिया। हम लोग उनसे दुःखी होकर नाक नाक आ गये हैं। हमने विचार किया कि क्या करना चाहिये, इनसे छूटे कैंसें? हे देव! आपकी अनुकम्पा से हम लोग उनको साथ ही आपके पास ले आये हैं। आप उन अशरीर धारी दुःखी जीवों का कल्याण करो। तो आपकी ज्योति के निकट सम्भराथल नहीं आ सकते हैं।
यहां नजदीक ही धूंपालिया गांव के टीबों में 350 भूत-प्रेत बैठे हुए हैं। हम उनको वहां एक खेजड़ी के नीचे बैठाकर आये हैं। कृपालु दया के सागर श्रीदेवजी वहां से उठ खड़े हुए। साथ में जमात एवं राजा आसकरण भी चला, थोड़े ही समय में वहां पर पंहच गये। जहां भूतों की जमात थी।
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जाम्बेश्वरजी ने कहा- हे अगति प्राप्त जीवात्माओ! आप लोग यदि अपना भला चाहते हैं तो पंक्ति लगाकर बैठ जाओ। पहले तो अपनी अपनी जाति तथा नाम बताओ। फिर यह बतलाओ कि तुमने ऐसा कौनसा कार्य किया जिससे इस प्रकार की अगति को प्राप्त होकर भटक रहे हो। उनमें चार भूत योद्धा थे।
प्रथम वे ही अपना परिचय देते हुए कहने लगे– हम खंधार, खेतसी,खेराज और करणसिंह थे वे ये हम हैं। हम चारों महिला गोत्र के हैं। खींवराव से हम कुचौरा रहने लगे थे। तथा अन्य हमारी जामत में केई चांपा, कुमावत, भगवन्ती, मेड़तिया, ये 14 राठौड़ बैठे हुए हैं। यदुवंशी, भाटी, सांखला, चौहान, पैथल, धंधे, सोढा, पंवार, इन्दो, सोनगरा, मोयल, सिसोदिया इत्यादि गोत्रों के तथा विभिन्न नावों के शूरवीर थे। वे ही मरकर भूत योनि में चले गये कुल तीन सौ पचास संख्या में उपस्थित हैं।
राजा आसकरण ने पूछा- हे गुरुदेव, ये लोग तो सभी शूरवीर थे। गौ तथा धर्म रक्षार्थ युद्ध करते हुए बलिदान को प्राप्त हुए थे। इनकी ऐसी दुर्गति क्यों हुई?
श्रीदेवी ने बतलाते हुए कहा-धरती डाकू गउवें ले जा रहे थे उन धाड़ेती डाकू लोगों को सबक सिखाने हेतु ये लोग युद्ध में लगे हुए थे। दोनों ओर से भयंकर संग्राम हुआ। दोनों ही पार्टियों के लोग कट मरे थे। आखिर जीत तो गोरक्षक शूरवीरों की ही हुई थी।
युद्ध के मैदान में शूरवीर पड़े हुए घायलावस्था में कराह रहे थे। उन्हें कोई देखने वाला भी नहीं था। प्यास लगी थी, वहां तो उन्हें कोई जल पिलाने वाला भी नहीं था। उसी समय ही एक स्त्री बैलगाड़ी पर जल लेकर अपने खेत को जा रही थी। उस महिला ने जब जंगल में घायलावस्था में कहराते हुए लोगों को देखा, वह उनके पास में गयी, उनकी सहायता करने की इच्छा हुई। उन घायलावस्था में लोगों ने जल मांगा, उस स्त्री ने जल पिलाया। उन तीनसौ पचास लोगों ने जल पिया और मृत्यु को प्राप्त हो गये।
हे राजन! वह जल पिलाने वाली स्त्री रजस्वला अवस्था में थी। एक रजस्वला स्त्री के हाथ का पानी पीकर वे स्वर्ग में जाने के अधिकारी क्षत्रिय लोग अधोगति भूत-प्रेत गति को प्राप्त हो गये थे। रजस्वला स्त्री के द्वारा बनाया हुआ भोजन जलादि ग्रहण करने से उनकी यह गति हुई थी।
श्रीदेवी ने उस समय ही वहां पर कच्चे करवे में जल मंगाया और हवन करके पाहल बनाया तथा उनको पंक्ति में बैठाकर भूतों के उपर पाहल जल छिड़का. सभी के देखते ही देखते उनका वायुप्रधान शरीर लुप्त हो गया और उन जीवात्माओं ने स्वर्गारोहण किया।
हे वील्ह! श्री जाम्बेश्वरजी द्वारा बनाया हुआ पाहल-जल की यही करामात है। भूत प्रेत प्राप्त जवि का सद्गति प्रदान करने वाला है। इसलिए जो सज्जन पुरूष होगा वह तो पाहल को अमृत तुल्य समझक ग्रहण करता है। और जो कपूत है वह पाहल लेने से लज्जा मरता है।