श्री गुरु जम्भेश्वर भगवान का प्रथम शब्द उच्चारण
प्रथम शब्द
ओ३म्- गुरु चीन्हो गुरु चीन्ह पुरोहित, गुरु मुख धर्म बखाणी। जो गुरु होयेबा सहजे शीले शब्दे नादे वेदे, तिहि गुरु का आलिंकार पिछाणी। छव दर्शन सिंह के रूपण थापण, संसार बरतण निजकर थरिया,
सो गुरु प्रत्यक्ष जाणी।
जिहि के खरतर गोठ निरोतर बाचा,रहिया रूद्र समाणी। गुरु आप संतोषी अवरा पोखी, संत महारस वाणी।
के के अलिया बासण होत हुतासण, तांबे खीर दूहीजू
रसूवन गोरस घी न लीयूं, तहाँ दूध व पाणी।
गुरु ध्याईये रे ज्ञानी, तोडत मोहा, अति खुरसाणी छीजत लोहा।
पाणी छल तेरी खाल पखाला, सतगुरु तोड़े मन का साला। सतगुरु है तो सहज पिछाणी, कृष्ण चरित्र बिन काचै करवै
रह्यो न रहसी पाणी॥1॥
उस तथाकथित ज्ञानी पुरोहित तथा सभी जनों को सम्बोधित करते हुए गुरु शब्द का सर्वप्रथम उच्चारण किया है। यह शब्द मंगल वाचक, शुभ कारक,भगवान विष्णु का ही बोधक है। उन छः दर्शनों के द्वारा जानने योग्य गुरु परमात्मा को पहचानो। उसी से ही तुम्हारा कल्याण का मार्ग प्रशस्त होगा।
जिस गुरु ने संसार रूपी बरतन-घड़ा अपने ही हाथों से बनाया है उस गुरु की पहचान करो। जिस गुरु परमात्मा के बारे में बड़े-बड़े विद्वानों की गोष्ठियां भी निरोतर चुप हो जाती है,वेद भी जिसे नेति नेति कहते हैं, उस गुरु परमात्मा को पहचानो। वह गुरु आत्मा रूप से सर्वत्र विद्यमान है स्वयं गुरु संतोषी है तथा दूसरों का पालन-पोषण करने वाला विष्णु रूप है, उस गुरु को पहचानो।
जो ब्रह्मा रूप से सृष्टि करता है और शिव-रूद्र रूप से संहार करता है, उस गुरु को तुम पहचानो।जिस गुरु की वाणी मधुर एवं रसयुक्त है। कई-कई लोग कच्चे बरतन की भांति पूर्णतया निर्दोष है, उन्हें गुरु रूपी अग्नि के संयोग से पकाने के लिए, स्वयं ज्ञान रूपी दूध-जल धारण करवाने हेतु गुरु उपस्थित है, पहचानो।
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सारहीन गोरस-मठा जिसमें से घी रूपी तत्व निकल चुका है, ऐसे उपेक्षित समाज के लोगों में पुनः रस भरने हेतु, सतगुरु बनकर विष्णु आये हैं, उन्हें पहचानो।
रे ज्ञानी ! गुरु का ध्यान कर, गुरु को पहचान, उसी से ही सम्बन्ध स्थापित कर । वह गुरु तेरे मानसिक,शारीरिक, संताप को हरण कर लेगा। तेरे मोह को तोड़ देगा, जिस प्रकार से खुरसाणी पत्थर लोहे के जंग को काट देता है।
यह तेरा शरीर ही जल से भरी हुई चमड़े की पखाल की तरह है, कभी भी छेद हो जायेगा यह शरीर जीर्ण-शीर्ण त्रुटित हो जायेगा,जलरूपी जीव उसमें से निकल जायेगा। सतगुरु तेरे मानसिक संशय भ्रम, अज्ञानता, आदि शूल-कष्टों को काट देगा।
हे पुरोहित यदि तुम्हारे सामने बेठा हुआ यह बालक सतगुरु है तो सहज में ही पहचान कर लेना,क्योंकि बिना कृष्ण चरित्र के कच्चे घड़े में न तो कभी जल ठहरा है और न ही कभी ठहरेगा। कृष्ण चरित्र से अनहोनी भी होनी हो जाती है। असंभव भी संभव हो जाता है।
जम्भेश्वर जी ने कहा- हे पिताजी! यह ब्राह्मण आशा लेकर आया है, यह यहाँ से धन हेतु निराशा लेकर न लौटे। गौदान तथा रूपये देकर इसकी इच्छा पूरी करो, क्योंकि यह पुरोहित अपनी आजीविका हेतु यह कार्य करता है, इसीलिए इसकी आजीविका में बाधा उत्पन्न न हो।
भगवान तो सभी को जीविका प्रदान करते हैं।चोर डाकू, पाखण्डी आदि सभी को भोजन मकान वस्त्रादि सुविधाएँ प्रदान करते ही हैं आप भी इसे निराश न कीजिये।
लोहटजी ने अपने वचनानुसार दो गाय एवं सौ रूपये दक्षिणा के दिये। ब्राह्मण प्रसन्न होकर वापिस घर को लौटा, किन्तु इस घटना को कभी भूल नहीं सका। सदा-सदा के लिए अपने को बदल लिया। शुद्ध क्रिया, सात्विक भाव से हवन यज्ञादिक कार्य में प्रवृत्त हुआ। पाखण्ड क्रिया को सदा के लिये छोड़ कर सत्य कर्म में प्रवृत हुआ। इस प्रकार से गुरु जाम्भोजी की यह बाललीला इस प्रकार से पूर्ण हुई। आगे गोचरण लीला प्रारम्भ होती है।
श्री गुरु जम्भेश्वर भगवान का प्रथम शब्द उच्चारण