बिश्नोई पंथ ओर प्रहलाद भाग 6
बिश्नोई पंथ ओर प्रहलाद भाग 6
नाथोजी उवाच- नाद तथा बिन्द यह दो प्रकार की परम्परा चलती है। प्रहलाद का यह पंथ नाद परम्परा से है। इसका विकास क्रमशः हुआ है। इस समय का अंतिम पड़ाव यह विश्रोई पंथ है। जिसको मैं विस्तार से आगे बतलाऊंगा। गुरु शिष्य को नाद-मंत्र ही देता है। प्रहलाद ने अपने शिष्यों को नाद-मंत्र ही दिया था इसलिए यह विश्नोई नाद परम्परा है। इस परम्परा में कुल जाति का महत्व नहीं है।
बिन्द परम्परा पिता के वीर्य-बिन्द से संतान होती है जिनका शरीर से सम्बन्ध है। वह शरीर जिस कुल में पैदा होगा वह उसी कुल का हो जायेगा। प्रहलाद की बिन्द परम्परा में-प्रहलाद के विरोचन (बहलोचन) हुए, ये भी प्रहलाद जैसे ही धर्मात्मा थे। विरोचन एक बार ब्रह्माजी के पास ज्ञानप्राप्ति हेतु गये थे, साथ में इन्द्र भी गये थे। दोनों को प्रजापति ने ज्ञान दिया था दोनों ही ब्रह्मज्ञानी बनकर लौटै थे।
राक्षस कुल में जन्म लेने से विरोचन अधूरा ही ज्ञान प्राप्त कर सका था वह संसार एवं शरीर को ही आत्मा समझकर अपने को ब्रह्मज्ञानी मानने लगा था इन्द्र देवता होने से पूर्णरूपेण आत्मज्ञान को प्राप्त कर सका था। यही देव और दानव में अन्तर है। विरोचन के पुत्र राजा बलि हुए। बलि ने अपने ऐश्वर्य-शौर्य से देवताओं को पराजित करके सम्पूर्ण राज्य प्राप्त कर लिया। बलि ने अनेकों यज्ञ करके राज्य को स्थिर करने की अभिलाषा से प्रयत्नशील थे।
देव माता अदिति अपने पति कश्यप ऋषि के शरण गयी और अपने बेटे देवताओं की दुर्दशा देखकर रोने लगी। कश्यप ने कहा- देवी। धैर्य धारण करो। किसी भी प्रकार से देवाधिदेव भगवान श्रीविष्णु को प्रसन्न करो। वही तुम्हारे कष्ट को दूर करेंगे।
अदिति के बारह दिनों भगवान प्रसन्न हुए तक पयोव्रत किया केवल दुग्ध आहार लेकर भगवान को आराधना की और सामने साक्षात् प्रकट होकर वरदान दिया। अदिति ने भगवान को ही पुत्र रूप में मांग लिया। समय आने पर भगवान विष्णु ही बावन रूप में प्रकट हुए। देवताओं ने खुशियां मनाई। अपना उद्धारक स्वयं भगवान ही बावन रूप में प्रकट हुए हैं।
अब हमारा खोया हुआ राज्य अतिशीघ्र ही वापिस दिला देंगे। बावन भगवान ने ब्रह्मचारी रूप में राजा बलि की यज्ञशाला में प्रवेश किया। बलि तथा अन्य लोगों ने देखा कि प्राप्त अग्नि की तरह यह कोई बाल सूर्य हो सकता है या स्वयं भगवान विष्णु ही आज तो ब्रह्मचारी बनकर यज्ञशाला में पधारे हैं सभी ने स्वागत किया, बलि ने आगे बढ़कर चरणों को धोया और यज्ञशाला में प्रवेश करवाया।
हाथ जोड़कर विनती करते हुए पूछा- आप हमारे अतिथि हो, आईये, बैठिये, जल-पान ग्रहण कीजिए? भगवान बामन ने कहा- अच्छी बात है राजन! आपने बैठने के लिए कहा है, किन्तु मैं बैठं कहाँ? आप भी देते हैं। प्रहलाद के पौत्र होकर केवल वचनों द्वारा ही आदर नहीं करते? बैठने के लिए स्थान-भूमि भी देते हैं।
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बलि ने बड़े गर्व से कहा- आपको भूमि चाहिये कहो कितनी चाहिये? गांव,नगर,देश या सभी धरती, रान्य आपको दे दें। मैं आपको दूंगा, जितना भी करोगे उतना ही दंगा। बावन बोले- हे बलि ! इतना काम करना अच्छा नहीं होता, मुझे तो तीन पैंड धरती दे दो। बहुत है मेरे लिए, मैं उसमें बैठ सके, शयन कर सकूं। मैं कोई लालची ब्रह्मचारी नहीं हूं।
बलि ने कहा- हे भगवान । इस प्रकार से थोड़ी भूमि माँगकर मुझे ल्जित न करें। उतनी धरती तो अवश्य ही मांग लो ताकि अन्यत्र कहीं दूसरी जगह मांगने के लिए जाना न पड़े। भगवान ने कहा- केवल बातें करने से क्या होता है, पहले इतनी भूमि देने का संकल्प करके दे दो । बलि ने ज्यों ही तुरंत संकल्प करने के लिए जल उठाया त्योंहि दैत्यगुरु शुक्राचार्य आ गये, बलि को समझाया- रे बलि! इसे देने का संकल्प मत कर, यह तुम्हे छोटा सा दिखता है किन्तु जब बढ़ने लगेगा तो तूं इनकी पूर्ति नहीं कर सकेगा।
तूं जानता है कि यह कौन है? ये तो साक्षात् विष्णु है। तुम्हें ठगने के लिए आये हैं। अभी ही ना कर दे, आखिर तो ना कहना ही होगा। बलि कहने लगा हे गुरुदेव। आपकी बात तो सत्य है, किन्तु मैनें देने को कह दिया है,अब मैं ना कैसे कह सकता हूँ ।
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बलि ने गुरु की बात नहीं मानी, हाथ में जल लेकर संकल्प कर लिया। बलि ने कहा हे देव। अब तीन पैण्ड भूमि नाप लीजिये। उसी समय ही बावन भगवान ने अपना शरीर बढ़ाना प्रारम्भ किया देखते ही देखते तीन लोकों में व्याप्त हो गया। एक पैण्ड से सम्पूर्ण पृथ्वी नाप ली दूसरे पैण्ड से स्वर्ग को नाप लिया। अब तीसरा पैर कहाँ रखे।
भगवान ने गरुड़ को आज्ञा दी, इस बलि को बांध दिया जावे। बलि बंधन में आ गया भगवान ने कहा- अब तो तूं कह रहा था कि थोड़ी और ले लो, अब इसको ही पूरी कर दो। बलि कहने लगा-हे नाथ। आपकी महिमा आप ही जानों,अब तो मेरे पास देने को कुछ भी नहीं है। यह शरीर मेरा है, इसे नाप लीजिये। भगवान ने बलि के पीठ पर पाँव रखा और उसे सुतल लोक में भेज दिया। बलि ने भगवान के चरण पकड़ लिए। बोले- अब कहाँ जाआगे? मैनें सर्वस्व आपको समर्पित कर दिया।
भगवान भी भक्त के वशीभूत हो गये, वही सुतल लोक में बलि के पास रहने लगे। इधर लक्ष्मी ने देखा कि भगवान लौटकर नहीं आये क्या बात है ? लक्ष्मी भगवान को छुड़ाने के लिए बलि के द्वार पंहुची। बलि के रक्षा सूत्र बांधकर भाई बनाया और भाई से पुरस्कार रूप में विष्णु को छुड़ाकर ले आयी।
जाते समय बलि ने कहा- बहन भगवान विष्णु चार महीने तक मेरे पास रहे हैं, इसलिए सदा-सदा के लिए आगामी भी इसी प्रकार से मेरे यहाँ सुतल लोक में रहेंगे, बाकी आठ महीनों के लिए बहन तुम अपने पति परमेश्वर को ले जाओ। इनकी सेवा करो।
उस सुतल लोक से चलते हुए भगवान ने कहा- हे बलि! तुम्हारा दिया हुआ परमदान व्यर्थ में नहीं जायेगा। इस समय तो यहीं सुतल लोक में राज्य करो। समय आने पर तुम्हें पुनः स्वर्ग का राज्य दिया जायेगा। तुम अवश्य ही इन्द्र पदवी से विभूषित होगे।
बलि का बेटा बाणासुर था। जिसने भगवान कृष्ण से युद्ध किया था भगवान कृष्ण ने बाणासुर को पकड़कर छोड़ दिया था। बलरामजी ने कहा- हे कृष्ण! तुम बहुत ही भूल करते हो, काबू में आए हुए इस बाणासुर को मारा क्यों नहीं? बार-बार इसे कैसे छोड़ देते हो? भगवान कृष्ण ने कहा- हे बलराम |
तुम्हें मालूम नहीं है, यह दैत्य प्रहलाद कुल में जन्मा है। मैनें भक्त प्रहलाद को वचन दिया था कि मैं तुम्हारे कुल में जन्म लेने वाले किसी को भी मारूँगा नहीं। उन्हें दिए हुए वचनों को निभाते हुए मैं इसे छोड़ रहा हूँ। ऐसा कहते हुए वाणासुर को छोड़ दिया था। हे वोल्ह! यह वंश परम्परा प्रहलाद की बिन्द से चली है। अब मैं तुम्हें आगे प्रहलाद की नाद परम्परा वानो शिष्य परम्परा के बारे में बताउंगा। इसी परम्परा से विश्रोई पंथ जुड़ा हुआ है।
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