
साखी – आये म्हारे जम्भ गुरु जगदीश
प्रातःकाल- आये म्हारे जंभ गुरू जगदीश ।
सुर नर मुनि हरि ने निवावें सीस ।।
सांय काल- गुरु आप समराथल आये हो ।
म्हारे संतो के मन भाये हो ।
लोहट घर अवतारा हो, ऐतो धन-धन भाग हमारा हो ।
हरि-हरि धन-धन भाग हमारा हो ।।1।।
अलख निरंजन आये हो,
ऐतो म्हारे संतो के मन भाये हो ।।2।।
घट-घट मायं बिराजे हो,
ऐतो शर्श शब्द धुनि गाजे हो ।।3।।
जांके चरण कोई ध्यावे हो,
ऐतोचार पदार्थ पावे हो ।।4।।
समराथल आसण साजे हो,
ऐतो झिगभिग जोत प्रकाशे हो ।15।।
नंद घर गऊवा चारी हो,
ऐतो नख पर गिरिवर धारिहो ।।6।।
विराट रूप अखंडा हो,
ऐतो जाके रोम कोटि ब्रह्माण्ड हो ।।7।।
इस धुन को कोई गावे हो,
ऐतो बास बैकुण्ठे पावे हो ।।8।।
जंभ गुरू की आशा हो,
ऐतो यश गावै गंगादासा हो ।।9।।
साखी – निवण करू गुरु जम्भने
निवण करू गुरु जंभने निऊं निरमल भाव ।
कर जोड़े बन्दू चरण शीश निवाया निवाय ।।
नीवणी खीवणी बीणती, सब सूं आदर भाव ।
कह केशो सोई बड़ा, जा में घणा छिभाव ।।
आम फले नीचो निवै, ऐरड ऊंचो जाय ।
नुगर सुगर की पारखा, कह केसो समझाय ।
आवो मिलो जुमले जुलौ, सिवंरो सिरजण हार ।।1।।
सतगुरू सत पंथ चालिया, खरतर खांडा धार ।।2।।
जम्भेश्वर जिभिया जपौ, भीतर छोड़ विकार ।।3।।
संपती सिरजण हार की, विधि सूं सुणों विचार ।।4।।
सज धज के बैठी है माँ, लागे सेठानी: भजन (Saj Dhaj Ke Baithi Hai Maa Laage Sethani)
माँ बगलामुखी अष्टोत्तर-शतनाम-स्तोत्रम् (Maa Baglamukhi Ashtottara Shatnam Stotram)
गणेश अंग पूजा मंत्र (Ganesha Anga Puja Mantra)
अवसर ढील न कीजिये, भलैन लाभै वार ।।5।।
जमाई राजा वांसै वहै, तलबी किया तियार ।।6।।
चहरी वस्तु न चाखिये, उर पर तज अंहकार ।।7।।
बाडे हुंता विछड्या जारी सतगुरू करसी सार ।।8।।
सेरी सिवंरण प्राणिया अंतर बड़ो आधार ।।9।।
परनिंदा पापा सिरे भूलि उठायै भार ।10।।
परलै होयसी पाप सूं मूरख सहसी मार ।।11।।
पाछे ही पछतावछी पापां तणी पहार ।।12।।
ओगण गारो आदमी इलारै उर भार ।।13।।
कह “केशो” करणी करो पावौ मोक्ष दवार ।।14।।
साखी – साधे मोमणे कीयो रे इलोच
साधे मोमणे कियो रे इलोच जुमलो रचावियो ।।1।।
इण जुमलै ने पूजैली करोड़, गुरू फरमावियो ।।2।।
दिलरा दुसमण पाल जुलकर जुमलै जावीयो ।।3।।
मोमणा मेल्हो मन री भ्रांत कुफर चूकावियो ।।4।।
पांचू करोड़े गुरू प्रहलाद, मुखीरे कहवावियो ।।5।।
साते करोड़े हरिचंद राव आछो करम कमावियो ।।6।।
नवै करोड़े दहुठल राव, सुरग सिधावियो ।।7।।
बारां करोड़ा काज जम्भ कलू मां आवियो ।।8।।
आयो गुरू लियो छै पिछाण भलो हुवेलो भावियो ।।9।। समराथल लियो छै मिलाण, तखत रचादिया ।।10।।
कुपातर सुं अलगा टाल, सुपह रे बतावियो ।।11 ।।
शास्त्र वेद विचार, उतम पंथ चला वीयो ।।12।।
अमल्यारा गाल्या माण, अनवी निवावियों ।।13।।
फेरयो छे सांवल ज्ञान अबुज बुजावियो ।।14।।
पहलादा हूं कोल संभाल, वाचा पालण आवियो।।15।।
जारा देवजी सारेलो काज गुरू जंभ धियावियो ।।16।।
जिण ध्यायो जम्भेश्वर देव, ताही फल पावियो ।।17।।
निवण करू गुरु जम्भने, निवण करू गुरु जम्भने, निवण करू गुरु जम्भने, निवण करू गुरु जम्भने