जाम्भोजी का भ्रमण करना (काबूल में जीव हत्या बंद करवाना) भाग 1
एक सम जाम्भोजी मक मदीन लवेयान की पाल्य उपरे खड़ा रह्या। एक झींवर जाल ले आयो। जाम्भोजी झींवर ने कह्यो- जल में जाल मत रेड। झींवर जल मां जाल रेडयो एक मछी आइ। जांभोजी नफर न कहे। दवा सुणाई। मछी अमर हुई, झींवर कनी यों मछी काजी लिवी। काजी करद चलाव। मछी कट नहीं। तीन दिन आतर मे कलाई। मछी क आंच लागी नहीं। काजी झींवर पकड़ि मंगायो। क्यों व कुटण यो पछी कां ते लायी काजी हकीकत कही, काजी मछी ले पीर क पास्य आया। काजी कह तु कुण मरद हो। जांभोजी कह यौह माही कहगी मछी कह-विसमलाह हरे रहमान रहीम… …
हे वील्ह! श्री जम्बेश्वर जा ने केवल समराथल पर हो शब्दोपदेश दिया हो ऐसी बात नहीं है। यत्र तत्र भ्रमण करके भूले भटके जीवों को सुपात्र जान कर उन्हे सचेत किया। एक समय श्री देवजी मका-मदीना गये थे। वहां पर लवेयान तालाब की पाल खड़े थे। उसी समय ही एक झींवर मच्छी पकड़ने वाला आया। और जल में जाल डालने लगा जाम्भोजी ने झींवर से कहा तूं जल में जाल मत डाल किन्तु झींवर ने देवजी की बात सुन कर भी अनसुनी कर दी और जल में जाल डाल दिया।
जाल में एक मच्छी फंस गयी, जांभोजी ने उस मच्छी को अमर होने का वरदान प्रदान किया जिससे वह अमर हो गयी। उस झींवर को क्या पता वह तो रोज की भांति उस मच्छी को जल से निकाल कर ले गया। बाजार में जाकर उस मच्छी को काजू के हाथ बेच दी। काजी ने उसे काटने के लिए करद चलाया किन्तु वह तो बज्र देह वाली हो गयी थी कटने में आयी नहीं। तब काजी ने उसे तीन दिन तक अग्नि में पकाई किन्तु वह ज्यों के त्यों बनी रही आंच लगी भी नहीं थी काजी ने उस झींवर को पकड़ के बुलाया और पूछा
रे कुटण! यह मच्छी तू कहां से लाया? काजी के सामने जो हकीकत थी वह उस झींवर ने बतलाई। काजी उस मछली को लेकर श्री देवजी के पास में आया। काजी कहने लगा- तुम कौन मरद हो? जाम्भोजी ने कहा- मैं कौन हूं, यह मैं नहीं कहूंगा, मेरा परिचय तो यह मच्छी ही दे रही है। अधिक क्या बताऊं। इस घटना से अब तक मेरा परिचय तुम्हें नहीं मिला तो अब अधिक कहने से भी कोई फायदा नहीं है। ऐसा कहते हुए शब्द बनाया।
यह शब्द अरबी-फारसी भाषा में है उस काजी को सुनाया था। यह शब्द काजी ने किताब में लिख लिया था। जाम्भोजी का स्वागत किया, और सदा सदा के लिए मच्छली न मारने का प्रण किया।
नाथोजी कहते है हे वील्ह! यह पारसी का शब्द होने से हमारे लोगों के समझ में नहीं आया। इसीलिए कण्ठस्थ भी नहीं हो सका था। काजी की किताब में लिखा हुआ था उसी रूप में तुम पढ सकते हो। शब्द इस प्रकार से है-
विसमलाह हरे रहमाने रहीम, रोजे ही वाय। सेख जहान मा वामक मदीनै वा जिवाय जिकर करद अद। नसबुद याय रबी। दसत पोसीद वव पे सेख। अवरदह। या पीर दसतगीर। अजमादर। उपदर पदास्य नेस। दह सूरा कदरव ओजू दमर धाम । नैमें वासद न मे करद अद। सेख पुरजीद की कुदरती। एमन माही सोगंद खुदाय तालाह हक बागोयौ माही दरसे खान वागुकदः अबलि गुसल करद अदः वाजे अंजली वाजे । इदवा सुखानंद मनवा जहां जरी दवा दप गोस तासीर आतस कुदरती नमै करद अद। हर के सेख क एक। समुरी दइ दवा अति रोज बुखानंदः अगर हरे रोजः पुरसद मैने वेदः एक राज पीरान मुरीदानः खुद बुखानंद खवा अबरत वा मुरद वाउ आकोन
अजावर कबेः सुद हाम दोजकी मन वासद परहेज बुद विसमलाह हिर रहमाने रहीम खरे खुलायक उआ अफजल अलाह सरि। अवल्य नासरे सइदान महमंद अलाहु सलम। बाजे कुल सलाम: अलाह सालहीज अलाह मोमदीनः उसलेह अलाह अबीयपां।
काजी किताब मां लिख्य लीवी। पीर की कदम पोसी कीवी। जीव तणां छोड्या।
उस समय का यह शब्द सुनाया हुआ नाथोजी ने वील्होजी को सुनाया। मृत मच्छली को जाम्भोजी के कहने से काजी ने वापिस जल में डाल दी। मच्छली जल में तैरने लगी। जिसकी सांई स्वयं रक्षा करे उसे मारने वाला कौन हो सकता है।
श्री देवजी ने मके-मदीने में प्रहलाद पंथी जीवों को सचेत कर के वहां से चल कर काबुल गए। वहां पर सुखनखां रहता था उसको दर्शन दिया, एक पहाड़ी पर आसन लगाया वहां पर पांच काबली चले आये है और पास में बैठ कर पूछने लगे-कि आप हिन्दू हो या मुसलमान?
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श्री देवजी ने कहा- न तो मैं हिन्दू हूं और नहीं मुसलमान। आप लोग क्या चाहते है। यह जीवात्मा न तो हिन्दू है और नहीं मुसलमान। आप लोग क्या चाहते है। दोनों पन्थो से उपर है। काबली कहने लगे यदि आपको भोजन करने की इच्छा हो तो आपके लिये भोजन ले आये। श्री देवजी ने कहा- मेरी चिंता न करो, आप लोग सुखनखां के पास जाओ और उनसे कहना कि हक की कमाई करो, हक का ही खाओ।
वे पांचो सुखनखां के पास गए और पीरजी की बात कह सुनाई-सुखनखां उन पांचो के साथ भोजन लेकर श्री देवजी के पास आया और कपड़े से ढकी हुई थाल आगे रखते हुए इस प्रकार से कहने लगा हे पीरजी! यह आपके लिए भोजन लाये है, इससे पेट भरो, ऐसा कहते हुए सुखनखां परिक्रमा करते हुए श्री देवजी के सामने बैठ गया।
श्री जाम्भोजी ने कहा- मुझे भोजन की आवश्यकता नहीं है क्योंकि मुझे भूख प्यास लगती नहीं है। भूख प्यास तो उसे ही सताती है जिनका शरीर पांच तत्वों से बना हुआ है। यह भोजन तुम वापिस अपने ही घर ले जाओ और एकान्त में बैठ कर खा लेना सुखन खां कुछ कहने लगा- तभी उसकी थाली में तीतर का मांस था वही भोजन लेकर आया था वे तीतर तो थाली में से जीवत होकर उड़ गये।
इस प्रकार से पीर में शक्ति देखी और सुखन खां चरणों में गिर पड़ा प्रार्थना करने लगा- हे पीरजी ! मुझे क्षमा कर दो मैं अब तक अज्ञान अंधकार में सोया हुआ था। अब मेरी आंखे खुल गयी। मेरे गुन्हे बकस दो। अपने जन को संसार सागर से पार उतार दो।
श्री देवजी ने उन्नतीस नियम बतलाते हुए कहा फिर कभी जीव हत्या नहीं करना। नियमों का पालन करना। तूं प्रहलाद पंथी जीव है। यह मैं जानता हूं इसीलिए मैं मुम्हारे पास आया हूं, तुम्हें जगाया है, फिर सो मत जाना।
जाम्भोजी का भ्रमण करना (काबूल में जीव हत्या बंद करवाना) भाग 2